पंचम काल में औदयिक भाव (गति, कषाय, शरीर नाम कर्म आदि) सबसे ज्यादा होते हैं।
दूसरे स्थान पर क्षयोपशमिक भाव(ज्ञान, दर्शन)।
पारिणामिक तो हमेशा बना रहता है पर इन पर औदयिक भावों का प्रभाव रहता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान- 3)
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4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने पंचमकाल में भाव का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य। अतः कोई भी काल हो धर्म से जूडे रहना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने पंचमकाल में भाव का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य। अतः कोई भी काल हो धर्म से जूडे रहना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
दूसरे स्थान ka kya meaning hai, please ?
औदयिक से कम ।
Okay.