जैसे सकलपारा चासनी में “पग” जाता है/चासनी उसके कण कण में समा जाती है, ऐसे ही हम अपने हठाग्रह/भौतिकता से “पग” गये हैं ।
अति के पगने पर पागल हो जाते हैं,
इसी से उन्हें पग+लिया कहना भाव-संगत लगता है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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उक्त कथन सत्य है कि पागल होने का कारण हठाग़ह और भौतिकता की अति होने के कारण है यानी इसी से उन्हें पग+लिया कहना भाव संगत लगता है।
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उक्त कथन सत्य है कि पागल होने का कारण हठाग़ह और भौतिकता की अति होने के कारण है यानी इसी से उन्हें पग+लिया कहना भाव संगत लगता है।