पदार्थ / द्रव्य / तत्व
वस्तु को द्रव्य, क्षेत्र, काल या भाव की अपेक्षा समझा जा सकता है, जैसे –
1. जीव पदार्थ – द्रव्य की अपेक्षा वस्तु है
2. जीवास्तिकाय – क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यात प्रदेशी
3. जीव द्रव्य – काल की अपेक्षा प्रतिसमय परिणमनशील
4. जीव तत्व – भाव की अपेक्षा ज्ञाता दृष्टा, उपयोग युक्त है ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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पदार्थ- – जो जाना जाये या निश्चय किया जाए उसे अर्थ या पदार्थ कहते है। मोक्ष मार्ग में जानने योग्य जीव, अजीव, आस्रव,बंध,संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप पदार्थ हैं।
द़व्य का मतलब गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं या जो उत्पाद व्यय और ध्रौव्य से युक्त उसे कहते हैं। इसके छह द़व्य होते हैं जो जीव,पुदगल, धर्म,अधर्म,आकाश और काल।
तत्त्व का मतलब जिस वस्तु का जो भाव है वहीं तत्व है या जो पदार्थ जिस रूप में अवस्थित है उसका रुप होना यही तत्त्व है। तत्त्व सात हैं जीव,अजीव, आस्रव, बंध, संवर , निर्जरा और मोक्ष है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि वस्तु को द़व्य,क्षेत्र,काल या भाव की अपेक्षा से समझा जा सकता है।इस प्रकार जो चारों की परिभाषा की है वह कथन सत्य है।