परनिन्दा / बुराई
गटर का ढक्कन तभी उठाओ, जब गटर को साफ कर सकने की सामर्थ हो।
इसी तरह परनिन्दा/ दूसरों की बुराई तब करो जब बुराइयों को साफ करने की सामर्थ्य हो, अन्यथा यह भाव हिंसा होगी जो द्रव्य हिंसा से भी बुरी है।
क्योंकि भाव तो हर समय चलते रहते हैं।
हम अपने भाव तो सुधार नहीं पा रहे दूसरों के भाव कैसे सुधार सकते हैं ?
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (16 अगस्त 2024)
One Response
आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने परनिंदा एवं बुराई को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए परनिंदा एवं बुराई करने से बचना परम आवश्यक है। अतः जीवन में अपनी बुराईयां को समाप्त करने का प़यास करना परम आवश्यक है।