परमात्मा का घर

पूरी जिंदगी लगा दी चाबी खोजने में,
अंत में पता चला कि ताला तो क्या, दरवाजे भी नहीं हैं…
परमात्मा के घर में ।

भीतर शून्य ! बाहर शून्य !! शून्य चारौ ओर है !!!
“मैं” नहीं है मुझमें, फिर भी “मैं-मैं” का ही शोर है ।

इसी तू-तू—मैं-मैं के चक्कर में भगवान के घर की ओर नज़र उठाने की फुर्सत ही कहाँ मिली !

(मंजू)

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4 Responses

  1. परमात्मा—सर्व दोषों से रहित शुद्ध आत्मा को कहते हैं। परमात्मा के दो भेद हैं,सकल परमात्मा अर्थात अर्हन्त भगवान् और निकल परमात्मा अर्थात सिद्ध भगवान् होते हैं। आजकल मनुष्य परमात्मा के घर की चाबी ढूंढते रहते हैं लेकिन अज्ञानता के कारण आत्मा को पहिचाने नहीं है। अतः परमात्मा का घर ढूंढने के लिए पहिले अपनी आत्मा की पहिचान आवश्यक है ताकि परमात्मा के घर जा सकतें हैं।

    1. मुझमें = आत्मा में
      मैं = अहम्
      नहीं है = आत्मा का स्वभाव नहीं है ।

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