परिषह = सब ओर से, प्रतिकूलता
परिषह-जय – सब ओर से सहना,
प्रतिकूल परिस्थितियों में अनुकूल महसूस करना।
इससे कर्मों का संवर और निर्जरा होती है तथा पुण्यों का आस्रव भी।
रत्नत्रय– भाग 2
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परिषह जय की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में परिषह जय यानी सब ओर से सहने की क्षमता होना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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परिषह जय की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में परिषह जय यानी सब ओर से सहने की क्षमता होना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।