पाप क्रिया करते समय पुण्य की निर्जरा होती है, उसके बिना पाप क्रिया हो ही नहीं सकती ।
पाप के उदय में पुण्य-क्रिया की जा सकती है ।
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यह कथन सही है कि जो पाप क़ियायें करते हैं, उसमें उसका पुण्य क्षीण होने लगता है। जीवन में पुण्य के समय पाप क़ियायों से बचना चाहिए और पुण्य की क़ियायों को करना चाहिए ताकि अपने जीवन को पुण्यशील बना सकते हैं और पाप क़ियायोंं से बच सकते हैं ।
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यह कथन सही है कि जो पाप क़ियायें करते हैं, उसमें उसका पुण्य क्षीण होने लगता है। जीवन में पुण्य के समय पाप क़ियायों से बचना चाहिए और पुण्य की क़ियायों को करना चाहिए ताकि अपने जीवन को पुण्यशील बना सकते हैं और पाप क़ियायोंं से बच सकते हैं ।