पाप

पाप परिस्थिति नहीं कराती, मन:स्थिति कराती है ।
जिस परिस्थिति में रागी पाप करता है, उसी परिस्थिति में वैरागी पुण्य करता है ।

क्षु. श्री ध्यानसागर जी

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2 Responses

  1. Very true. This is a classic example of same “nimitt” acting differently, because of “manastithi”.

  2. पाप के विषय में कल कमेन्ट किया गया था। यह बिल्कुल सत्य है कि पाप मनःस्थिति कराती है। रागी परिस्थिति में पाप होता है वह वैरागी पुण्य करता है। आपका पुण्य आता है उस समय पाप करने लगते हैं जिससे पुण्य क्षीण होने लगता है।

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