समवसरण में सीढियां चढ़नी नहीं पड़तीं; सब कुछ देवकृत/ स्वचालित।
लेकिन पहली सीढ़ी तक जाने का पुरुषार्थ तो करना ही होगा,
बाह्य परकोटे के नृत्यादि के आकर्षणों को दबाना होगा।
तब देवदर्शन होते हैं।
चिंतन
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चिंतन में पुरुषार्थ को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए परमार्थिक कार्यों में पुरुषार्थ करना परम आवश्यक है।
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चिंतन में पुरुषार्थ को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए परमार्थिक कार्यों में पुरुषार्थ करना परम आवश्यक है।
Very true !