दोष और दोषी
पुलाक मुनियों को मूलगुणों में दोष लगने पर भी गुणस्थान नहीं गिरता,
क्योंकि दोष लगा – प्रतिक्रमण/प्रायश्चित कर लिया ।
दोष लगाया नहीं, लग गया ।
नारेली का एक विद्यार्थी दिल्ली में पढ़ाई करते समय रात्री भोजन का नियम नहीं पाल पा रहा था ।
उसने आ. श्री से प्रायश्चित मांगा ।
आचार्य श्री ने कई दिन प्रतीक्षा कराके कहा – जब तुम्हारी माँ दिल्ली पहुँच जायेंं तब नियम निभा लेना ।
आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि मुनियों को कोई दोष लगता है, लेकिन उनके गुणस्थान नहीं गिरता है, क्योंकि उसके लिए प़तिक़मण और प्रायश्चित कर लेते हैं। लेकिन ग़हस्थ में नियम पालन में कोई दोष लगता है, उसके लिए गुरुओं से ही प्रायश्चित लेना ही पड़ेगा ताकि अपने दोष को दूर किया जा सकता है। अतः जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है