पूजादि श्रद्धा का विषय है, चारित्र का नहीं;
वरना मुनियों को भी अनिवार्य होतीं ।
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पूजादि का मतलब पंचपरमेष्ठि के गुणों का चिन्तवन करना होता है। उपरोक्त कथन सत्य है कि पूजादी क्षद्वा का विषय है, चारित्र का नहीं,वरना मुनियों को भी अनिवार्य होती। अतः मुनियों को चारित्र का पालन करना होता है।
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पूजादि का मतलब पंचपरमेष्ठि के गुणों का चिन्तवन करना होता है। उपरोक्त कथन सत्य है कि पूजादी क्षद्वा का विषय है, चारित्र का नहीं,वरना मुनियों को भी अनिवार्य होती। अतः मुनियों को चारित्र का पालन करना होता है।