मुनि श्री अजितसागर महाराज जी ने पूजा, छह आवश्यक को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए पूजा विशुद्ध भाव से करना परम आवश्यक है।
पूजा में भगवान के गुणगान होते हैं/ संसार की रचना की बातें होती हैं/ 12 भावना की बातें होती हैं। इन सबसे खुद का और अगर सामूहिक है तो सबका ज्ञान बढ़ेगा कि नहीं।
इन सब चीजों को पढ़ने से स्वाध्याय भी माना जाएगा; स्वाध्याय क्या है यही सब तो है।
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मुनि श्री अजितसागर महाराज जी ने पूजा, छह आवश्यक को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए पूजा विशुद्ध भाव से करना परम आवश्यक है।
Can this be explained a little more in detail, please ?
6 आवश्यक लिख दिये हैं। देखो/ घटित करो…
पूजा में ‘ज्ञान-दान” aur “स्वाध्याय” kaise ghatit hota hai?Yeh aur bata denge, please ?
पूजा में भगवान के गुणगान होते हैं/ संसार की रचना की बातें होती हैं/ 12 भावना की बातें होती हैं। इन सबसे खुद का और अगर सामूहिक है तो सबका ज्ञान बढ़ेगा कि नहीं।
इन सब चीजों को पढ़ने से स्वाध्याय भी माना जाएगा; स्वाध्याय क्या है यही सब तो है।
Okay.