पूजा
पूज्यं जिनं त्वाऽर्चयतो जनस्य,सावद्य-लेशो बहु-पुण्य-राशौ।
दोषाय नालं कणिका विषस्य,न दूषिका शीत-शिवाम्बु-राशौ ॥58॥
(आचार्य समंतभद्र कृत स्वयंभूस्तोत्र)
विष की कणिका सुधाकर में अमृत बन जाती है।
मेंढक की पूजन सामग्री(कणिका) का फल सुधाकर जैसा पूज्य बन गया।
मंडूक बनो, कूप-मंडूक नहीं।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
4 Responses
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने पूजा का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। जीवन में पूजा विशुद्वी भाव से करना चाहिए, जैसे मेंढक भी फूलों की पत्ती लेकर गया था तब अपना कल्याण करने में समर्थ रहा था।
‘कणिका’ ka kya meaning hai, please ?
बूँद
Okay.