प्रायोगिक धर्म
प्रायोगिक धर्म यानि आंतरिक/ व्यवहारिक धर्म जिसका प्रयोग घर तथा कारोबार में हो।
इसके अभाव में मन्दिर में रामायण तथा घर/ कारोबार में महाभारत!
इसीलिये आचार्य श्री विद्यासागर जी ने मूकमाटी महाकाव्य की रचना की है।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
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मुनि श्री वीरसागर महाराज जी का कथन सत्य है कि प़ायोगिक धर्म यानी आंतरिक एवं व्यावहारिक धर्म जिसका प्रयोग घर तथा कारोबार में हो! इसके अभाव में मन्दिर में रामायण तथा घर या कारोबार में महाभारत! इसलिए आचार्य श्री विघासागर महाराज जी ने मूकवाटी महाकाव्य की रचना की गई है! अतः जैन धर्म में जिनवाणी का प़योग मन्दिर, घर या परिवार में प़योग करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!