पाप की निर्जरा में पुण्यबंध भी होगा।
ऐसे ही पुण्यानुबंधी में पाप की निर्जरा भी होगी।
आगम में दसवें गुणस्थान तक किसी भी पुण्य प्रकृति की निर्जरा का कथन नहीं है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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बंध का तात्पर्य कर्म का आत्मा के साथ एकक्षेत्रावगाह होना कहलाता है। निर्जरा का मतलब जिस प्रकार आम फल पककर वृक्ष से पृथक हो जाता है,इसी प्रकार आत्मा को भला बुरा देकर कर्मों का झड जाना निर्जरा होती है। आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में कर्मों की निर्जरा करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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बंध का तात्पर्य कर्म का आत्मा के साथ एकक्षेत्रावगाह होना कहलाता है। निर्जरा का मतलब जिस प्रकार आम फल पककर वृक्ष से पृथक हो जाता है,इसी प्रकार आत्मा को भला बुरा देकर कर्मों का झड जाना निर्जरा होती है। आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में कर्मों की निर्जरा करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।