बंध

एक भेद है – “अनादि वैस्रिसिक* बंध”
धर्म, अधर्म और आकाश, तीनों का परस्पर संबंध ।

कालाणुओं का भी ऐसा ही बंध है क्योंकि उनका परस्पर विश्लेष कभी नहीं होता ।
पुदगल द्र्व्यों में भी महास्कंध आदि का अनादि बंध है ।

*पुरुष का प्रयोग अपेक्षित नहीं है ।

श्री राजवार्तिक -7,9

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