बाजार की चीजों का त्याग

पवित्रता और अहिंसा की दृष्टि से बाजार की चीजों का त्याग तो करना चाहते हैं पर किसी के यहां जाने पर बाजार की चीजें खानी पड़ती हैं, इसलिये त्याग नहीं कर पाते ।

किसी के घर जायें तो बोलें – ‘हम तो आपके हाथ की बनी चीजें ही खायेंगे, बाजार की चीजें तो बाजार में खाते ही रहते हैं ।
इससे वह बुरा मानने कि जगह प्रसन्न ही होगा ।

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2 Responses

  1. Very nice way to handle the situation.
    We tend to give such lame excuses…& fail in our sanyam sadhna.
    Thanx for the post.

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