भव्यता / भक्ति
भव्य मंदिरों में भक्ति ज्यादा आती है, समवसरण सबसे ज्यादा भव्य होते हैं, मन्दिर भी समवसरण के रूप होते हैं।
पर देवता अपने-अपने भव्य मन्दिरों को छोड़कर हमारे साधारण मन्दिरों के दर्शन करने आते हैं।
कारण ?
नये मन्दिरों से भी मन ज्यादा आकर्षित होता है।
पर अपने मन्दिर में अपनापन तथा दृष्टि वीतरागता पर रहे तो वहाँ भी पूरा आनंद।
चिंतन
One Response
भक्ति का तात्पर्य अर्हन्त भगवान् आदि के गुणों में अनुराग रखना है । भव्यता का मतलब अधिक से अधिक उन्नति होना है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि भव्य मंन्दिरों में भक्ति अधिक होती है, मन्दिर भी समवसरण के रुप होते हैं। देवता भव्य मन्दिर को छोड़कर नये मन्दिरों में जाते हैं, क्योंकि उनको वह आकर्षित करते हैं। अतः मन्दिर में भव्यता पूर्वक भक्ति करना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।