भाग्य = पिछले साल का बीज।
पुरुषार्थ = बीज बोना, फसल की देखभाल करना।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने भाग्य एवं पुरुषार्थ को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में भाग्य अच्छा रहे उसके लिए पुरुषार्थ करना परम आवश्यक है। ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने भाग्य एवं पुरुषार्थ को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में भाग्य अच्छा रहे उसके लिए पुरुषार्थ करना परम आवश्यक है। ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।