भावना

प्राय: भावनाऐं सिद्धांतों के अनुरूप ही होती हैं, पर कभी कभी उलंघन भी होता है जैसे सबका कल्याण हो ।
अभव्य का ?
पर बारह भावनाओं से ही संवेग और वैराग्य की शुरुवात होती है ।
इसलिये कार्तिकेयानुप्रेक्षा में बारह भावनाओं को “माँ” (मंगलाचरण में) कहा है ।
ये भावनाऐं मोक्षगामियों को बिना मंज़िल (मोक्ष) देखे, मंज़िल का रास्ता दिखातीं हैं ।

मुनि श्री सुधासागर जी

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