भावना

किसी के/सबके भले के लिए शांति की भावना भाने से उसका/सबका भला हो सकता है, क्योंकि उसके जीवन में परेशानी आने से हमको अशांति होती है ( यदि उनसे हमारा संबंध हो तो )
यदि उनसे हमारा संबंध नहीं है तब हमारे दया के भाव होने से हमारा भला तो होगा ही ।

Share this on...

4 Responses

  1. जैन धर्म में भावना का ही महत्वपूर्ण स्थान है। सभी के प्रति मंगल भावना भानी चाहिए चाहे दुश्मन हो या मित्र हो ताकि उस भावना से उनको शान्ती मिलती रहती हैं। जीवन में जो जैसी भावना करते हैं उसी प्रकार के परिणाम मिलते हैं।
    अतः जीवन में सभी प्राणियों के लिए मंगल भावना करना चाहिए ताकि स्वयं का व अन्य जीवों का कल्याण हो सकता है।
    दया के भाव से हमारा तो भला होगा लेकिन जिसके साथ आपसे कोई संबंध नहीं है उसका भी भला होगा।

    1. हमारे संबंधी के जीवन में असाता आने से हमको असाता होती है,
      तो जब हम उसके लिए साता का भाव रक्खेंगे तो उसकी साता की उदीरणा हो सकती है न !
      और यदि हमारा उससे संबंध नहीं है तो हमको तो साता हो ही रही है ।
      Win-win situation रही न !!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

April 2, 2020

July 2024
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
293031