भाव प्रधानता
भाव प्रधानता का मतलब यह नहीं कि भावों से कार्य की पूर्णता कर लें, क्रिया की जरूरत ही नहीं,
बल्कि यह कि…
हर क्रिया भावपूर्ण होनी चाहिये ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
भाव प्रधानता का मतलब यह नहीं कि भावों से कार्य की पूर्णता कर लें, क्रिया की जरूरत ही नहीं,
बल्कि यह कि…
हर क्रिया भावपूर्ण होनी चाहिये ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
One Response
जैन धर्म भाव प़धान है।भाव परिवर्तन रुप संसार में अनेक बार भ़मण करता रहता है।अतः सिर्फ भावो से कार्य की पूर्णता कर लें यह जरुरी नहीं है बल्कि हर क़िया भावपूर्ण होना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।