१. आगम-भाव : जैसे मनुष्यपना >> सामान्य विषय, किसी का पिता होगा पर मेरे अनुभव में नहीं ।
२. नो आगम-भाव : मनुष्यपना + पितापना (बेटे के अनुभव में) ।
मुनिपना मेरे स्व-चतुष्टय के काम का नहीं, गुरुपना काम का ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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5 Responses
भाव का मतलब जीव के परिणाम को कहते हैं, इनके पांच भेद होते हैं। आगम भाव में जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहे गए हितकारी वचन होते हैं।नो भाव में इसके उदय में औदारिक शरीर जो जीव के सुख दुख का निमित्त बनता है। अतः उपरोक्त कथन का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
मुनिपद/ मुनिपना तो उनके खुद के लिए होता है जब वे अपनी क्रियाओं में लगे रहते हैं, तब वे हमारे लिए नहीं होते ।
प्रवचनादि के समय वे गुरु की भूमिका निभाते समय हमारे काम के होते हैं ।
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भाव का मतलब जीव के परिणाम को कहते हैं, इनके पांच भेद होते हैं। आगम भाव में जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहे गए हितकारी वचन होते हैं।नो भाव में इसके उदय में औदारिक शरीर जो जीव के सुख दुख का निमित्त बनता है। अतः उपरोक्त कथन का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
Can meaning of the last line be explained, please ?
मुनिपद/ मुनिपना तो उनके खुद के लिए होता है जब वे अपनी क्रियाओं में लगे रहते हैं, तब वे हमारे लिए नहीं होते ।
प्रवचनादि के समय वे गुरु की भूमिका निभाते समय हमारे काम के होते हैं ।
जब मुनि अपनी क्रियाओं में लगे रहते हैं तब वे अपने चतुष्टय के काम के,
प्रवचनादि के समय मेरे चतुष्टय को सुधार सकते हैं ।
Okay.