*अति प्रशंसा वाली भाषा प्रिय तो लगती है, पर संदेह रहता है ।
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यह कथन सत्य है कि भाषा हित, मित और संदेह रहित होना चाहिए।अति प़शांसा करने वाली भाषा प़िय तो लगती है लेकिन संदेह युक्त हो सकती है।अतः कम बोलो, धीरे बोलो और मीठा बोलो, तभी जीवन सफल होगा।भाषा राग द्वेष से परे होना चाहिए, तब संदेह की सीमा नहीं रहेगी।
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यह कथन सत्य है कि भाषा हित, मित और संदेह रहित होना चाहिए।अति प़शांसा करने वाली भाषा प़िय तो लगती है लेकिन संदेह युक्त हो सकती है।अतः कम बोलो, धीरे बोलो और मीठा बोलो, तभी जीवन सफल होगा।भाषा राग द्वेष से परे होना चाहिए, तब संदेह की सीमा नहीं रहेगी।