भूत-अनुकम्पा….
भूत = आयु + शरीर वाले (जो शरीर को ही स्वयं मानते हैं)।
अनुकम्पा = दूसरे की पीड़ा को अपनी पीड़ा मानना।
तब पीड़ा अपनी हो गयी। अब अपनी पीड़ा समाप्त करना है।
अंगदान को दान नहीं सहायता/ दया मानना चाहिये।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 6/12)