भेद / अभेद
भेद से संसार चलता है/ धर्म की शुरुवात भी भेद से, पर पूर्णता अभेद से जैसे वस्त्र बनाने से पहले उसके टुकड़े करने पड़ते हैं फिर सिलकर भेद समाप्त किया जाता है।
भक्त और भगवान में भी प्रारम्भिक अवस्था में भेद होता है, यदि दोनों को एक मान लिया तो साधना समाप्त क्योंकि जब भक्त अपने को भगवान मान लेगा तो भगवान बनने का प्रयास क्यों करेगा !
मुनि श्री सुधासागर जी
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भेद विज्ञान का तात्पर्य शरीर आदि पर द़व्यो से आत्मा भिन्न है ,ऐसा होना ही भेद विज्ञान होता है।भेद अभेद का जो मुनि महाराज ने उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में भेद विज्ञान पर आस्था एवं श्रद्वा करने पर ही कल्याण हो सकता है।