मनुष्य भव की उत्कृष्ट स्थिति 47 कोटि पूर्व + 3 पल्य;
47 भव कर्म-भूमि में और अंतिम भोग-भूमि में ।
इसमें 16 पुरुष + 16 स्त्री + 16 नपुंसक ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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भव का तात्पर्य आयु कर्म के उदय से जीव को जोड़ने मनुष्य,देव आदि पर्याय होती हैं। चार भव होते हैं, मनुष्य,तिर्यंच,नरक और देव। अतः मनुष्य भव की जो व्याख्या की गई है, उसके विषय में मुझे ज्ञात नहीं है, यदि हो सके तो समझाने का प्रयास करना।
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भव का तात्पर्य आयु कर्म के उदय से जीव को जोड़ने मनुष्य,देव आदि पर्याय होती हैं। चार भव होते हैं, मनुष्य,तिर्यंच,नरक और देव। अतः मनुष्य भव की जो व्याख्या की गई है, उसके विषय में मुझे ज्ञात नहीं है, यदि हो सके तो समझाने का प्रयास करना।