मन का विषय नहीं पर खुराक है – “मान”,
दोनों ही दिखते नहीं है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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2 Responses
मन नाना प्रकार के विकल्प-जाल को कहते हैं यानी गुण, दोष का विचार व स्मरण आदि करना मन का कार्य है।मन को अन्तःकरण भी कहते हैं।
मान—दूसरो के प़ति नमने की वृति न होना होता है अथवा दूसरो के प़ति तिरस्कार रुप भाव होना कहलाता है।अतः मन का विषय नही खुराक होता है,दोनो ही दिखते नहीं है।मन जीवन में बहुत चंचल होता है।
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मन नाना प्रकार के विकल्प-जाल को कहते हैं यानी गुण, दोष का विचार व स्मरण आदि करना मन का कार्य है।मन को अन्तःकरण भी कहते हैं।
मान—दूसरो के प़ति नमने की वृति न होना होता है अथवा दूसरो के प़ति तिरस्कार रुप भाव होना कहलाता है।अतः मन का विषय नही खुराक होता है,दोनो ही दिखते नहीं है।मन जीवन में बहुत चंचल होता है।
Can it’s meaning be explained please?