मल-विसर्जन
नित्य-आहार के मल-विसर्जन के लिये 9 मल-द्वारों से मल-विसर्जन होता है।
त्वचा, मांस, हड्डियों के मल-विसर्जन के लिये असंख्यात द्वारों (रोम) से हर समय विसर्जन होता रहता है ।
यह सब देखकर भी हमारा शरीर से आकर्षण कम क्यों नहीं होता !
मुनि श्री सुधासागर जी
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विसर्जन का मतलब क्षीण हो जाना होता है। त्वचा,मांस हड्डियों के मल विसर्जन के लिए असंख्तात द्वारों से हर समय विसर्जन होता रहता है। इसके बाद भी अपने शरीर को आकर्षक बनाने का प्रयास करते रहते हैं। अतः जीवन में कर्म सिद्धांत का आभास होना चाहिए कि शरीर तो क्षीण होता है। अतः उचित होगा कि अपनी आत्मा का आभास होना चाहिए ताकि अपनी आत्मा के हित में विचार कर जीवन का कल्याण हो सकता है।