शक्कर तो सबके कपों में होती है, कुछ उसे घोल लेते हैं (जीवन में),
कुछ ज़िंदगी भर फीकी चाय ही पीते रहते हैं, शक्कर बची रह जाती है, बरबाद हो जाती है ।
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मिठास लाने के लिए शक्कर को पूरी तरह घोलना पड़ता है, तभी उसकी मिठास का आनंद उठा सकते हैं;
इसी प्रकार, आत्मा की मिठास लेने के लिए, उसमें पूरी तरह लीन रहना चाहिए, तभी आपको आनंद आएगा ।
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मिठास लाने के लिए शक्कर को पूरी तरह घोलना पड़ता है, तभी उसकी मिठास का आनंद उठा सकते हैं;
इसी प्रकार, आत्मा की मिठास लेने के लिए, उसमें पूरी तरह लीन रहना चाहिए, तभी आपको आनंद आएगा ।
Can its meaning in the spiritual sense, be explained please?
मिठास/आनंद तो सबके अंदर है,
कुछ उसे प्रगट कर लेते हैं,
बाक़ी उसे लेकर दुर्गति में चले जाते हैं,
जहाँ न मिठास होता है नाही आनंद ।
Okay.