अकृत्रिम चैत्यालयों में अरहंत (बिना चिंह के) तथा सिद्ध भगवान की मूर्तियाँ होती हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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जिनबिंब के आश्रयभूत स्थान को चैत्यालय या जिनालय कहा जाता है।यह दो प़कार के होते हैं, कृत्रिम और अकृत्रिम चैत्यालय।मनुष्य लोक में मनुष्यों के द्वारा निर्मित जिनमन्दिर होते हैं, सदेव प़काशित रहने होते हैं। अकृतिम चैत्यालयों में बिना चिन्ह के होते हैं तथा सिद्व भगवान् की मूर्तियां भी होती है।
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जिनबिंब के आश्रयभूत स्थान को चैत्यालय या जिनालय कहा जाता है।यह दो प़कार के होते हैं, कृत्रिम और अकृत्रिम चैत्यालय।मनुष्य लोक में मनुष्यों के द्वारा निर्मित जिनमन्दिर होते हैं, सदेव प़काशित रहने होते हैं। अकृतिम चैत्यालयों में बिना चिन्ह के होते हैं तथा सिद्व भगवान् की मूर्तियां भी होती है।
Kya, “Akratrim chaityala”, humesha “Prakashit” rahte hain?
हाँ, रत्नों से प्रकाशित ।