मोक्षमार्ग में श्रीमंत ही चल सकते हैं,
दातार/उदार ही मार्गी होगा, याचक नहीं ।
इसमें साधु भी आते हैं क्योंकि उनकी विभूति भगवान जैसी तो नहीं पर उनके पद को भी श्रीमंत ही माना जायेगा ।
आर्यिका श्री वर्धस्वनंदनी माताजी
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याचना का मतलब है कि जो कठिन तपस्या करते हैं,शरीर भी जर्जर हो जाता है लेकिन वह आहार चर्या की भी नहीं सोचते हैं, वही सच्चे मोक्षमार्ग पर प़शस्त होते हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि मोक्षमार्ग में श्रीमंत ही चल सकते हैं,दातार / उदार मार्गी होगा लेकिन याचक नहीं। इसमें साधु भी आते हैं क्योंकि उनकी विभूति भगवान् जैसी नहीं पर उनके पद को भी श्रीमंत ही माना जाएगा। जीवन में मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए बहुत अधिक पुरुषार्थ करना आवश्यक है।
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याचना का मतलब है कि जो कठिन तपस्या करते हैं,शरीर भी जर्जर हो जाता है लेकिन वह आहार चर्या की भी नहीं सोचते हैं, वही सच्चे मोक्षमार्ग पर प़शस्त होते हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि मोक्षमार्ग में श्रीमंत ही चल सकते हैं,दातार / उदार मार्गी होगा लेकिन याचक नहीं। इसमें साधु भी आते हैं क्योंकि उनकी विभूति भगवान् जैसी नहीं पर उनके पद को भी श्रीमंत ही माना जाएगा। जीवन में मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए बहुत अधिक पुरुषार्थ करना आवश्यक है।