मोक्षमार्ग
आत्मा को दु:खों से दूर रखने/मुक्त करने का मार्ग ।
दु:ख दूर होते हैं, पापों से दूर रहने से ।
पाप करते समय तो अच्छे लगते हैं, उनका फल भोगते समय दुखदायी ।
इसीलिये भगवान ने सबसे पहले (श्रावक तथा श्रमण) 5 पापों से बचने को कहा (अणुव्रत/महाव्रत) ।
तभी मोक्षमार्ग पर शुरुआत करने की पात्रता आयेगी ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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मोक्ष का मतलब समस्त कर्मों से रहित आत्मा का परम विशुद्व अवस्था होना होता है। इसके मार्ग पर चलने के लिए अज्ञान निवृति, विषय त्याग,व़त तथा त्याग और विकल्पों की शून्यता होती है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि आत्मा को दुखों से दूर रखने, मुक्त करने का मार्ग और पापों से दूर रहने से। जीवन में पाप करते समय अच्छा लगता है लेकिन फल भोगते समय दुःख दायी होता है।
अतः मोक्ष मार्ग पर चलने की शुरुआत करना आवश्यक है।