मोह

जल और मोह जहाँ गहरा होता है, बहाव उधर ही हो जाता है/वहीं ठहर जाता है, ठहरने से सड़ने लगता है ।
खुद का तथा जिससे मोह की तीव्रता होती है, दोनों का नुकसान करता है ।

चिंतन

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One Response

  1. यह कथन बिलकुल सत्य है – – – – – – – – – –
    मोहनीय कमॅ के उदय से जीव हित – अहित के विवेक से रहित होता है। सामान्यतया सम्यग्दर्शन की बात करने वाले दश॓न – मोहनीय कमॅ को मोह कहते हैं। जैन धर्म में मोक्ष माग॓ पर चलने के लिए मोह को बिलकुल त्याग करना पडता है। संसार प़ाणी को बैराग्य की ओर बढने के लिए मोह को छोडने का प्रयास करना होता है।

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