कुछ सिद्धांत ग्रंथों के अनुसार छठवें गुणस्थान तक शुभ तथा अशुभ दोनों योग होते हैं।
सातवें गुणस्थान से तेरहवें गुणस्थान तक शुभ योग ही।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड – गाथा – 243)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी योग का जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः जीवन में अशुभ एवं शुभ योग उसके कर्मों द्वारा होतें रहते हैं, अतः शुभ योग के लिए गुणस्थान का बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रहती है!
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी योग का जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः जीवन में अशुभ एवं शुभ योग उसके कर्मों द्वारा होतें रहते हैं, अतः शुभ योग के लिए गुणस्थान का बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रहती है!