राग – ये पेन्सिल अच्छी है ।
द्वेष – ये पेन्सिल बुरी है ।
मोह – ये पेन्सिल मेरी है/मुझे मिल जाये ।
सच्चा ज्ञान – ये तो बस पेन्सिल है, लिखने के काम आती है ।
इष्टोपदेश – (अंजू)
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रागिनी का तात्पर्य इष्ट पदार्थों में प्रीति या हर्ष रुप परिणाम होना है, द्वेष का मतलब जो काय,मान आश्रित,शोक,भय यह विविध रुप होते हैं।
अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। सच्चा ज्ञान वही है जिसमें राग द्वेष के भाव नहीं होते हैं। अतः धर्म से जुड़कर अपने राग द्वेष के भाव समाप्त करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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रागिनी का तात्पर्य इष्ट पदार्थों में प्रीति या हर्ष रुप परिणाम होना है, द्वेष का मतलब जो काय,मान आश्रित,शोक,भय यह विविध रुप होते हैं।
अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। सच्चा ज्ञान वही है जिसमें राग द्वेष के भाव नहीं होते हैं। अतः धर्म से जुड़कर अपने राग द्वेष के भाव समाप्त करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।