राग

भेद –

  1. राग करना – निचले स्तर पर ।
    बुद्धि पूर्वक गृहस्थों में,
    अबुद्धि पूर्वक व्रतियों के
  2. राग होना – मुनिजन राग करते नहीं सत्ता/उदय में रहता है ।
  3. राग दिखना – मुनिजन में वात्सल्य दिखता, राग होता नहीं है ।

कर्मबंध – 1 Category में ही होता है ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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4 Responses

  1. राग का मतलब इष्ट पदार्थों में प्रीति या हर्ष रुप परिणाम होना है। यह दो प्रकार के होते हैं प़शस्त और अप़शस्त । अप़शस्त राग का मतलब भौतिक सुख सुविधाओं के प्रति राग बढ़ाने वाली कथा या बातचीत करने में मन लगाये रहना है। इसी प्रकार प़शस्त राग का मतलब अर्हंन्त, सिद्ध, साधुओं के प्रति भक्ति, दान पूजा आदि धर्म कार्यो में उत्साह और गुरुओं का अनुकरण होता है।
    अतः राग के जो भेद बताए गए हैं वह पूर्ण सत्य है। जिसमें कर्म का बंध राग पहिले होता है।

    1. सत्ता में तो राग 10वें गुणस्थान तक रहता है,
      पर क्षीण होते-होते 10वें गुणस्थान में सत्ता में होते हुए भी, मोहनीय के बंध योग्य शक्ति समाप्त हो जाती है ।

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