राग के साथ अधिक दिन रह नहीं सकते,
जैसे दुल्हन श्रंगार अधिक दिन नहीं रख सकती ।
बाद में तो राग को बस ढोना होता है ।
वैसे भी राग की अधिकता भाव-हिंसा है ।
बस वीतरागता शाश्वत है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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4 Responses
राग का तात्पर्य इष्ट पदार्थों में प़ीति या हर्ष रुप परिणाम होता है, जबकि वीतराग का तात्पर्य आत्म साधना के द्वारा जिन्होंने राग द्वेष को नष्ट कर दिया है। राग भी दो प्रकार के होते हैं प़शस्त और अप़शस्त है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि राग के साथ अधिक दिन तक नहीं रह सकते हैं, इसलिए दुल्हन श्रंगार अधिक दिन नहीं रख सकतीं हैं, इसलिए राग को ढोना ही होता है। राग की अधिकता भावहिंसा माना गया है। अतः वीतरागता शाश्वत है,जिसको अपनाना ही पड़ेगा ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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राग का तात्पर्य इष्ट पदार्थों में प़ीति या हर्ष रुप परिणाम होता है, जबकि वीतराग का तात्पर्य आत्म साधना के द्वारा जिन्होंने राग द्वेष को नष्ट कर दिया है। राग भी दो प्रकार के होते हैं प़शस्त और अप़शस्त है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि राग के साथ अधिक दिन तक नहीं रह सकते हैं, इसलिए दुल्हन श्रंगार अधिक दिन नहीं रख सकतीं हैं, इसलिए राग को ढोना ही होता है। राग की अधिकता भावहिंसा माना गया है। अतः वीतरागता शाश्वत है,जिसको अपनाना ही पड़ेगा ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
जहाँ M.A.के विषयों(वीतरागता) की चर्चा चल रही हो, वहां पहली कक्षा के क ख ग(द्वेष) की बात करने की आवश्यकता नहीं होती ।
Okay.