धर्म में रुचि –> सम्यग्दर्शन –> सम्यक्चारित्र –> निर्जरा।
पर धर्म पर विश्वास कैसे हो ?
जैसे High Tension का बोर्ड देखते ही सावधानी बरतना शुरू कर देते हो।
ऐसा विश्वास कि सम्यग्दर्शन ही श्वास है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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7 Responses
आचार्य श्री विघासागर महाराज जी ने रुचि को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। जीवन के कल्याण के लिए धर्म पर श्रद्वान होना परम आवश्यक है। जीवन में रुचि परमार्थ कार्यों में होना परम आवश्यक है।
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आचार्य श्री विघासागर महाराज जी ने रुचि को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। जीवन के कल्याण के लिए धर्म पर श्रद्वान होना परम आवश्यक है। जीवन में रुचि परमार्थ कार्यों में होना परम आवश्यक है।
‘ऐसा विश्वास कि सम्यग्दर्शन की श्वास है।’ Is sentence ka meaning aur clarify karenge, please ?
सुधारा…ऐसा विश्वास कि सम्यग्दर्शन ही श्वास है।
Okay.
Is post me ‘Samyak-gyaan’ ka naam kyun nahi liya? Ise clarify karenge, please ?
स.ज्ञान तो स.दर्शन के साथ युगपत हो ही जाता है।
It is now clear to me.