अंतराय कर्म के क्षयोपशम से क्षयोपशम-लब्धि प्राप्त होती है, क्षय से क्षायिक-लब्धि ।
पांच लब्धियों(क्षयोपशम, विशुद्ध, देशना, प्रायोग्य, करण) की प्राप्त होने पर सम्यग्दर्शन होता है ।
जिनधर्म न मिलने का कारण, क्षयोपशम-लब्धि की हीनता होती है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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लब्धि का तात्पर्य तप विशेष से प्राप्त होने को रिद्धि कहते हैं। इसमें चार लब्धि क्षयोयशम,विशुद्वी,देशना,प़योग अमान्य मानी जाती है, जबकि करण लब्धि भव्य जीव को प्राप्त होती है। अतः उपरोक्त कथन जो दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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लब्धि का तात्पर्य तप विशेष से प्राप्त होने को रिद्धि कहते हैं। इसमें चार लब्धि क्षयोयशम,विशुद्वी,देशना,प़योग अमान्य मानी जाती है, जबकि करण लब्धि भव्य जीव को प्राप्त होती है। अतः उपरोक्त कथन जो दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।