जो पदार्थ जिस शब्द के द्वारा कहा जाता है, उस शब्द के द्वारा पदार्थ से सम्बन्ध जुड़ गया जैसे जीव शब्द सुनते ही आत्मा की और गति हो गयी।
यानि श्रुतज्ञान हमें वाच्य-वाचक सम्बन्ध की ओर ले जाता है।
वाचक = शब्द, वाच्य = शब्द में छिपा अर्थ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड-गाथा- 315)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने वाच्य वाचक सम्बन्ध का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः श्रुत ज्ञान ही हमको वाच्य वाचक सम्बन्ध की और ले जाता है!
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने वाच्य वाचक सम्बन्ध का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः श्रुत ज्ञान ही हमको वाच्य वाचक सम्बन्ध की और ले जाता है!