दर्शन विशुद्धि के बाद विनय इसलिये रखी क्योंकि अब वह गुणों (सम्यग्दर्शन आदि) को जान गया/ उन पर श्रद्धा आ गयी है।
श्रद्धावान ही सच्ची विनय कर सकता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तित्थर भावणा- गाथा 10)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने विनय भावना का उल्लेख किया गया है वह पूर्ण सत्य है। विनय भावना के अभाव में देव, शास्त्र, गुरु पर श्रद्वान करना मुश्किल होगा। अतः जीवन में श्रावक को विनय भावना का पालन करना परम आवश्यक है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने विनय भावना का उल्लेख किया गया है वह पूर्ण सत्य है। विनय भावना के अभाव में देव, शास्त्र, गुरु पर श्रद्वान करना मुश्किल होगा। अतः जीवन में श्रावक को विनय भावना का पालन करना परम आवश्यक है।