रावण की ही नहीं, राम की भी,
वरना मृग सोने का हो सकता है क्या ?
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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2 Responses
बुद्वि तो प़तेक जीव में होती है लेकिन बुद्वि के विपरीत कर्म करता है तो बुद्वि विनाशकाले विपरीत बुद्वि में बदल जाती है। अतः रावण की नहीं बल्कि राम की भी हुई थी जिसके कारण मृग को सोने का समझ लिया गया था, जबकि मृग सोने का नहीं होता हैं। यह सब उसके पूर्व कर्म का आधार होता है।
अतः जीवन में कर्म सिद्धांत पर विश्वास करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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बुद्वि तो प़तेक जीव में होती है लेकिन बुद्वि के विपरीत कर्म करता है तो बुद्वि विनाशकाले विपरीत बुद्वि में बदल जाती है। अतः रावण की नहीं बल्कि राम की भी हुई थी जिसके कारण मृग को सोने का समझ लिया गया था, जबकि मृग सोने का नहीं होता हैं। यह सब उसके पूर्व कर्म का आधार होता है।
अतः जीवन में कर्म सिद्धांत पर विश्वास करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
Very true. Humne kabhi “Ram” ko us angle se nahin dekha aur sirf “Raavan” ko hi blame kiya hai.