विषय / कषाय
आत्मा के लिये बड़ा अहितकारी है क्या, विषय या कषाय?
कषाय, विषय तो मुनिराजों के भी रहते हैं जैसे ठंड़ी हवा का स्पर्श।
पर विषयों में लिप्तता कषाय से आती है और वह बंध का कारण बनती है।
मुनि श्री सुधासागर जी
आत्मा के लिये बड़ा अहितकारी है क्या, विषय या कषाय?
कषाय, विषय तो मुनिराजों के भी रहते हैं जैसे ठंड़ी हवा का स्पर्श।
पर विषयों में लिप्तता कषाय से आती है और वह बंध का कारण बनती है।
मुनि श्री सुधासागर जी
5 Responses
विषय का तात्पर्य इन्द़ियों के द्वारा जानने योग्य पदार्थ होते हैं,यह अठ्ठाईस होते हैं।
कषाय का तात्पर्य आत्मा में होने वाली क़ोधदि रुप कलुषता होती है। यह चार, जैसे क़ोध मान माया और लोभ होती हैं।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि आत्मा के लिए दोनों अहितकारी होते हैं लेकिन कषाय तो मुनियों के भी होती है, जैसे ठण्डी हवा स्पर्श करती है। लेकिन विषयों में लिप्तता कषाय से आती है,यह बंध का कारण होती है। मुनियों में विषयों में लिप्तता नहीं रहती है, इसके कारण कषाय नहीं होती है, इसलिए जब कषाय का भाव आता है तो उसे सहन करने की क्षमता रहती है और ठंडक महसूस करते हैं।
Can meaning of “विषय”, in this context be explained, please?
जैसे लोभ कषाय को विचार करके भूख से ज्यादा भोजन की इच्छा भी करना चारित्र-मोहनीय का विषय हुआ।
इंद्रियां जिनमें involve होती हैं, वे उन-उन इंद्रियों के “विषय” होते हैं?
Okay.