विस्रसोपचय
विस्रसोपचय वर्गणायें आत्मा से चिपकी नहीं होतीं बल्कि स्थित होती हैं। इसीलिये तत्त्वार्थ सूत्र में “स्थिता” शब्द का प्रयोग किया है।
(विग्रह) गति (एक स्थान से दूसरे स्थान जाने पर) में आत्मप्रदेशों पर स्थित वर्गणायें साथ जायेंगी, नोकर्म वाली छूट जायेंगी।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा- 249)
4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने विस्त्रसोपच का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
‘विस्रसोपचय वर्गणायें’ ka koi example dijiye, please ?
Ticket window पर लगी लाइन, खुलते ही रागद्वेष, निश्चित समय (कर्म स्थिति) के लिए यात्रा की बाध्यता।
Okay.