इन्द्रियों के बढ़ने से वीर्यांतराय का क्षयोपशम तथा आत्मा/ शरीर की शक्त्ति बढ़ती है।
वीर्यांतराय का क्षयोपशम बढ़ने से ज्ञान बढ़ता है तथा ज्ञान बढ़ने से वीर्यांतराय का क्षयोपशम।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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वीर्यातराय का मतलब द़व्य जो अपनी शक्ति विशेष का वीर्य है।जिस कर्म के उदय जीव किसी कार्य करें प़ति उत्साहित होने की इच्छा होते हुए उत्साहित नहीं हो पाता है,या असमर्थ का अनुभव करना हो। अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि इन्द़ियो केवल बढ़ने से वीर्यातराय का क्षयोपशम तथा आत्मा या शरीर की शक्ति बढ़ती है।क्षयोपशम बढ़ने पर ज्ञान बढ़ता है तथा ज्ञान बढ़ने से वीर्यातराय का क्षयोपशम।
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वीर्यातराय का मतलब द़व्य जो अपनी शक्ति विशेष का वीर्य है।जिस कर्म के उदय जीव किसी कार्य करें प़ति उत्साहित होने की इच्छा होते हुए उत्साहित नहीं हो पाता है,या असमर्थ का अनुभव करना हो। अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि इन्द़ियो केवल बढ़ने से वीर्यातराय का क्षयोपशम तथा आत्मा या शरीर की शक्ति बढ़ती है।क्षयोपशम बढ़ने पर ज्ञान बढ़ता है तथा ज्ञान बढ़ने से वीर्यातराय का क्षयोपशम।