वेग/ उद्वेग/ निर्वेग
यदि भेद विज्ञान से कर्म/ नोकर्म/ आत्मा के स्वभाव की ओर देखें तो शरीर के प्रति आसत्ति का वेग कम होगा, उसे ही “निर्वेग” कहते हैं, यह वैराग्य का पर्यायवाची है।
वेग की कमी न होना ” उद्वेग” है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा – 244)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने वेग, उद्वेग एवं निर्वेग का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए भेद विज्ञान को जानना परम आवश्यक है।