सम्यक् प्रकृति के उदय को अनुभवन* करने वाले जीव का तत्वार्थ श्रद्धान, वेदक-सम्यक्त्व होता है।
इसी का नाम क्षयोपशम-सम्यग्दर्शन भी है।
श्री धवला जी – 1/173
* सम्यक्प्रकृति का उदय 4 से 7 गुणस्थानों में ही होता है।
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सम्यक्त्व का मतलब चैत्य गुरु और शास्त्र की पूजा आदि सम्यक्त्व बढ़ाने वाली होती है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि सम्यक् प़कति के उदय अनुभवन करने वाले जीव का तत्त्वार्थ श्रद्वान,वेदिक सम्यक्त्व होता है,इसी का नाम क्षयोपशम सम्यग्दर्शन भी है।यह भी सत्य है कि सम्यक प़कति का उदय 4 से 7 गुण स्थान में ही होता है।
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सम्यक्त्व का मतलब चैत्य गुरु और शास्त्र की पूजा आदि सम्यक्त्व बढ़ाने वाली होती है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि सम्यक् प़कति के उदय अनुभवन करने वाले जीव का तत्त्वार्थ श्रद्वान,वेदिक सम्यक्त्व होता है,इसी का नाम क्षयोपशम सम्यग्दर्शन भी है।यह भी सत्य है कि सम्यक प़कति का उदय 4 से 7 गुण स्थान में ही होता है।