वेद-वैषम्य
द्रव्य-वेद तो पुण्य/ पाप से मिलता है।
भाव-वेद नोकषायों/ वेदों में लिप्तता से,
जिस वेद में रुचि, वही भाव-वेद मिलेगा।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड- गाथा 229)
द्रव्य-वेद तो पुण्य/ पाप से मिलता है।
भाव-वेद नोकषायों/ वेदों में लिप्तता से,
जिस वेद में रुचि, वही भाव-वेद मिलेगा।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड- गाथा 229)
4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने वेद वैषम्य का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि जिस वेद में रुचि वही भाव वेद मिलेगा।
‘वैषम्य’ ka kya meaning hai, please ?
एक ही जीव के भाव-वेद और द्रव्य-वेद में विपरीतता।
Okay.