शक्तितस्त्याग
शक्तितस्त्याग दो प्रकार से व्याख्यायित किया गया है-
1. तत्त्वार्थ सूत्र जी में ⇒ “शक्तितस्त्याग”
2. षटखण्डागम जी में ⇒ “प्रासुक परित्याग” (तीर्थंकरादि की वाणी प्रासुक होती है, उसका दान)। यह प्राचीन नाम है।
जबकि पहला प्रचलित, गृहस्थों की अपेक्षा कहा है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (ति.भा. गाथा- 49)
7 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने शक्तीतस्त्याग को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
1) तीर्थंकरादि की वाणी ka दान ka kya meaning hai ?
2) तीर्थंकरादि kyun bola ?
Ise clarify karenge, please ?
1) अपना ज्ञान वाणी के द्वारा दूसरों को देना दान हुआ न !
2) सामान्य केवली भी पूछने पर ज्ञान देते हैं।
Okay.
‘प्रासुक परित्याग’ aur ‘शक्तितस्त्याग’ ka kya link hai ? Ise clarify karenge, please ?
पहला मुनिराजों की अपेक्षा जो भगवान की वाणी को अपनी शक्ति के अनुसार दान करते हैं।
दूसरा श्रावकों की अपेक्षा शक्ति अनुसार अन्य चीज़ों का।
It is now clear to me.